क्या-क्या ख़याल जी से गुज़रते हैं सुबह-ओ-शाम
ज़ख़्म नये दिल में उभरते हैं सुबह-ओ-शाम
सदिया गुज़र गयीं हैं तुम्हें बेवफ़ा हुए
हम याद तुम्हें आज भी करते हैं सुबह-ओ-शाम
रह-रह के ,चौंक-चौंक के मैं नींद से जागूं
बन-बन के मेरे सपने बिखरते हैं सुबह-ओ-शाम
जब-जब तेरी यादों की घटा दिल पे छाई है
बादल मेरी आँखों के बरसते हैं सुबह-ओ-शाम
पल-पल मैं देखता हूँ उठ के राह गुज़र को
नैना तेरे दीदार को तरसते हैं सुबह-ओ-शाम
मत पूछिए क्या आलम-ए-ख्वाब-ओ-उम्मीद है
अंगार से सीने में देहकते हैं सुबह-ओ-शाम
3 comments:
नीरज जी
गज़ल तो आपने बहुत ही स्तरीय लिखी है, रवानगी और गहरायी से भरपूर। कुछ शेर विशेष पसंद आये, जैसे:
सदिया गुज़र गयीं हैं तुम्हें बेवफ़ा हुए
हम याद तुम्हें आज भी करते हैं सुबह-ओ-शाम
रह-रह के ,चौंक-चौंक के मैं नींद से जागूं
बन-बन के मेरे सपने बिखरते हैं सुबह-ओ-शाम
बधाई आपको।
*** राजीव रंजन प्रसाद
अच्छी लगी रचना. बधाई.
नीरज जी, बहुत बढिया रचना लिखी है।
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