Monday, August 22, 2011

सुबह बाकि है, शाम अभी बाकि है

सुबह बाकि है, शाम अभी बाकि है
इस दिल के कुछ अरमान, अभी बाकि हैं

कोई है जो मेरा होश उड़ा ले गयी है
शांशे रुक गयी है, पर जान, अभी बाकि है

की थी, मैंने भी, आसमान की चाहत कभी
पर टूट गए हैं, उड़ान अभी बाकि है

ये क्या गजब, हवाओं ने अपना रुख बदला
तूफ़ान दर पे है और अंजाम, अभी बाकि है

सुना था आँसुओं में हर गम बह जाते है
रो-रो कर थक गया हूँ, निशान अभी बाकि है

सोचता हूँ, किसपे लुटाऊंगा दिल की दौलत सारी
सब कुछ तो लुट चूका, यादो का मकान, ही बाकि है

अब जाऊं तो कहाँ जाऊं, सुकून पाने को, ऐ खुदा...
शान्शे तक जलती है, दिल का मेहमान अभी बाकि है

ख्याल आता है क़ि बचपन क़ी गलिओं में लौट चलूँ,
कि आज भी उन गलिओं में मेरी पहचान, अभी बाकि है

बस एक उस खुदा का ही तो आश्रा है मुझे,
ना हो मायुश क़ि आखरी फरमान, अभी बाकि है

वो सोचते हैं क़ि हम बद्दुआ करते है..
बद्दुआ दे भी, तो दे केसे...
उसके दिल में ही तो, मेरी जान, अभी बाकि है

गर वो कहते है उनके दिल में जगह ही नहीं,
कोई कह दे उनसे.....
कोई गम क़ी बात नहीं, शमशान, अभी बाकि है ...
कोई गम क़ी बात नहीं, शमशान, अभी बाकि है ...

सुबह बाकि है, शाम अभी बाकि है
इस दिल के कुछ अरमान, अभी बाकि हैं

प्यार ने पूछा ज़िन्दगी क्या है?

प्यार ने पूछा ज़िन्दगी क्या है?
हमने कहा तेरे बिन कुछ नहीं.
उसने फिर पूछा दर्द क्या है?
हमने कहा जब तू संग नहीं.

प्यार ने पूछा मोहब्बत कहा है?
हमने कहा मेरे दिल में कही.
उसने फिर पूछा खुदा कहा है?
हमने ने कहा तुझमे कही.

प्यार ने पूछा हमसे इश्क क्यों है?
हमने कहा उसको भी पता नहीं
उसने फिर पूछा इतनी बेचैनी क्यों है?
हमने कहा इसमें कसूर मेरा नहीं.

प्यार ने पूछा एतबार करोगे मेरा ?
हमने कहा तुमसे बढकर कोई नहीं.
उसने फिर पूछा साथ दोगे मेरा ?
हमने कहा क्यों नहीं क्यों नहीं!!…

Thursday, July 21, 2011

कोई दिल से कहदो, कि उम्मीद का ये बहाना छोड़े

कोई दिल से कहदो, कि उम्मीद का ये बहाना छोड़े...
और भी गम है ज़माने में, ये गम पुराना छोड़े...


मैं खुश था बहुत इश्क के बगैर भी, तनहा...
उसकी यादों से कह दो, मेरे दिल में यूँ आना छोड़े...

वो राग जो बस गया है, होंठों पे गीत बनके मेरे...
उस राग से कहदो, मेरे होंठों पे गुनगुनाना छोड़े...

वो सनम, बेरहम है, जो दिल में बस गया है मेरा...
उस हमदम से कह दो, के मेरे दिल का ठिकाना छोड़े...

जो आँशु बनके बहता है मेरे इन निगाहों से भी...
उन आँशुओं से कहदो के, मेरे आँखों में आना छोड़े...


वो ना आयेंगे कभी....
कोई दिल से कहदो, कि उम्मीद का ये बहाना छोड़े...
कोई दिल से कहदो, कि उम्मीद का ये बहाना छोड़े...

क्यूँ चले गए.......?

दिल के एक कोने से फ़रियाद आई है,
पता नहीं आज कैसे तेरी याद आई है.
होंठ सिले थे,अरमान सारे सो चुके थे ,
और हम तो अपने आंसू पुरे रो चुके थे .

जाना था जल्दी तो तुम फिर क्यूँ आये?
क्यूँ दिल में तुम छोड़ गए काले साये ?.
सूना कर आगोश मेरा क्यूँ चले गए तुम ?
ज़िन्दगी है बन गयी बिना तुम्हारे सुन्न .

अब हम तो रह गए हैं जिन्दा लाश से ,
आजाओ सनम बस खुदा के पास से
अब आओगे तुम,तो हम जाने ना देंगे,
जुदाई की हरएक पल का हिसाब लेंगे.

Tuesday, June 21, 2011

मेरा गम मुझे अज़ीज़ है

मेरा गम मुझे अज़ीज़ है कुछ दिल के तो करीब है
मेरी आँख में आंसू रहें उम्र भर ये नसीब है
मेरा गम मुझे अज़ीज़ है

कुछ लब सिसकते भी रहें कुछ आँख भीगी भी रहे
क्यों करूं ये ख्वाहिश मेरा गम इक रात पीती भी रहे
मेरे साथ कुछ तो है यहाँ ये बात क्यों अजीब है
मेरा गम मुझे अज़ीज़ है

मेरे आँख कि ये गौहरें हर गौहरों में तू रहे
सब चाहे मेरे चमन से जाए इनमें तेरी खुशबू रहे
मैं हर गौहर समेटती हूँ कोइ क्यों कहे गरीब है
मेरा गम मुझे अज़ीज़ है

मर जाऊंगी तेरी राह में आँखें बिछा कर तू न आ
देखा नहीं होगा किसी ने इस तरह तेरा रास्ता
दिल में रहे तू न दिखे तो नज़र ही बदनसीब है
मेरा गम मुझे अज़ीज़ है

मेरा गम मुझे अज़ीज़ है कुछ दिल के तो करीब है
मेरी आँख में आंसू रहें उम्र भर ये नसीब है।

Wednesday, June 15, 2011

कैसे-कैसे दरमिया आने लगा प्यार

कैसे-कैसे दरमिया आने लगा प्यार
करीब तुम्हारे मुझको लाने लगा प्यार,

खुली आंखो पर भी नीद हो जैसे
दिन की रोशनी मे खोने लगा प्यार,

इन्तज़ार रहा राहो पे हद से बाहर तक
अब नज़र-नज़र मे समाने लगा प्यार

न जाने क्या रहा लगाव इस रिश्ते मे
फ़िर हर बार मुझको तडफ़ाने लगा प्यार

जहां हो चुके हो मन पूरे समर्पित
वहां धडकन मे यू ही बसने लगा प्यार.

Friday, June 3, 2011

जो है पूरा है पर छलकता नहीं

जो है पूरा है पर छलकता नहीं
जितना है अच्छा है पर यूं झलकता नहीं

कुछ ऐसा हो कि सुबह और ताज़ी हो
ये आस्मां और फिरोज़ी हो

कुछ वैसा हो कि सपने और रूपहले हों
आरजूऐं और चमकीले हों

और यूं भी हो कि हर हंसी और नशीली हो
आंखों की नमी और गीली हो

तो पंख नए बुनूंगी फिर चुन कर रंग
उनको बांध लूंगी रूह के संग ।

उन पंखों पर ऊर्जा के धागों की कढ़ाई करूंगी
और जो पूरा है उसे और और और भरूंगी ।

Tuesday, May 31, 2011

जो तू नहीं होती

मै जो भी हूँ तेरी चाहत के पागलपन का मतलब है,
नहीं मिट्टी के इस पुतले मै इतना दम नहीं होता,
हाँ तुने जिंदगी मेरी बदल दी है मगर सुन ले,
अगर जो तू नहीं होती,मै फिर भी कम नहीं होता,


तेरी चाहत मै सीखा था के क्या है प्यार का मतलब,
तेरी यादों ने बतलाया के क्या दुनिया मै हूँ में अब.
हाँ तेरे प्यार के दम पर मै मजधारों से लौटा हूँ .
मगर तू ना भी होती तो, मै सागर पार कर लेता.


तेरे ही साथ सीखा है, भरी बरसात मै चलना,
तेरे दीदार के खातिर वो दिनभर धूप मै तपना.
तुझे पाने कि जिद का दिल मै शोलों की तरह जलना.
हाँ तेरे प्यार मै तपकर मै कुंदन सा निखर आया.

मगर तू ना भी मिलती तो भी, सोना ही निकलता में.

Saturday, May 21, 2011

आज फिर से रोने को दिल चाहता है

आज फिर से रोने को दिल चाहता है...
बीती बातों में खोने को दिल चाहता है...
याद आती है मुझको वो बातें पुरानी...
वो भोली सी मस्ती,वो प्यारी कहानी...
उन्ही यादों में फिर से खोने को दिल चाहता है...
आज फिर से रोने को मेरा दिल चाहता है...


मिले थे कभी हम इस अजनबी शहर में...
चले हम संग -संग अनजाने सफ़र...
पलकों में थे सपने,दिल में एक उमंग थी...
रास्ता था मुश्किल,ख़ुद से हर पल एक नयी जंग थी...
अब तो बस फिर यादें ही रह जाएँगी...
कुछ बातें रह जाएगी,वो रातें रह जाएँगी...
उन्ही रातों में फिर से सोने को जी चाहता है...
आज फिर से रोने को दिल चाहता है...


खैर मिल पाएगा नही अब वो कंधा...
जिस पर सर रख कर हम रो सके...
कुछ तुमसे कह सके ,कुछ तुमको सुन सके...
हँसता हूँ फिर भी आँखों में नमी है...
रोने के लिए अब आँखों में आँसू भी नही है...
पलकों का समंडर भी अब सूना लगता है...
तन्हा मुझको अब घर का आईना लगता है...
अब हर पल ख़ुद से बचने को दिल चाहता है...
आज फिर से रोने को दिल चाहता है...


कितने अजीब थे वो मस्ती भरे दिन...
सपने थे आँखों में नये रोज़ दिन...
बातों में हर पल थी शहद सी मिठास..
हमे दूरियों का ना था एहसास...
खेले थे हम हैर पल जिन खिलौने से...
उन खिलौने से फिर खेलने को दिल चाहता है...
आज फिर से रोने को दिल चाहता है...

आज फिर से रोने को दिल चाहता है

आज फिर से रोने को दिल चाहता है

आज फिर से रोने को दिल चाहता है...
बीती बातों में खोने को दिल चाहता है...
याद आती है मुझको वो बातें पुरानी...
वो भोली सी मस्ती,वो प्यारी कहानी...
उन्ही यादों में फिर से खोने को दिल चाहता है...
आज फिर से रोने को मेरा दिल चाहता है...






मिले थे कभी हम इस अजनबी शहर में...
चले हम संग -संग अनजाने सफ़र...
पलकों में थे सपने,दिल में एक उमंग थी...
रास्ता था मुश्किल,ख़ुद से हर पल एक नयी जंग थी...
अब तो बस फिर यादें ही रह जाएँगी...
कुछ बातें रह जाएगी,वो रातें रह जाएँगी...
उन्ही रातों में फिर से सोने को जी चाहता है...
आज फिर से रोने को दिल चाहता है...




खैर मिल पाएगा नही अब वो कंधा...
जिस पर सर रख कर हम रो सके...
कुछ तुमसे कह सके ,कुछ तुमको सुन सके...
हँसता हूँ फिर भी आँखों में नमी है...
रोने के लिए अब आँखों में आँसू भी नही है...
पलकों का समंडर भी अब सूना लगता है...
तन्हा मुझको अब घर का आईना लगता है...
अब हर पल ख़ुद से बचने को दिल चाहता है...
आज फिर से रोने को दिल चाहता है...





कितने अजीब थे वो मस्ती भरे दिन...
सपने थे आँखों में नये रोज़ दिन...
बातों में हर पल थी शहद सी मिठास..
हमे दूरियों का ना था एहसास...
खेले थे हम हैर पल जिन खिलौने से...
उन खिलौने से फिर खेलने को दिल चाहता है...
आज फिर से रोने को दिल चाहता है...

Wednesday, May 18, 2011

न जाने तेरी याद क्यों


न जाने तेरी याद क्यों फिर से आने लगी है,
दिल को बेवक्त बेवजह फिर से सताने लगी है,

खुश हो जाता है दिल मेरा अब ये सोच कर,
की तू मुझे और मेरी यादो को भुलाने लगी है,

शायद ये यादे मेरी तुजे बुहत सताने लगी है,
इसी लिए तू मेरा नाम अपने दिल से मिटाने लगी है,

अपने आपको हर-पल मुझसे छुपाने लगी है,
आहिस्ता-आहिस्ता मुझे गैर बनाने लगी है,

तुजसे बिचाद ने का गम नहीं है अब मुझे,
तन्हाई मुझे अब इस कदर बहाने लगी है. .

~*क्या उदासी खुबसूरत नही होती है*~



अम्बुधि लहरों के शोर में
असीम शान्ति की अनुभूति लिए,
अपनी लालिमा के ज़ोर से
अम्बर के साथ – लाल सागर को किए,
विहगों के होड़ को
घर लौट जाने का संदेसा दिए,
दिनभर की भाग दौड़ को
संध्या में थक जाने के लिए
दूर क्षितिज के मोड़ पे
सूरज को डूब जाते देखा!

तब, तट पे बैठे
इस दृश्य को देखते
नम आँखें लिए
बाजुओं को आजानुओं से टेकते
इस व्याकुल मन में
एक विचार आया!
किंतु उस उलझन का,
परामर्श आज भी नही पाया!
की जब विदाई में एक दुल्हन रोती है,
जब बिन बरखा-दिन में धुप खोती है,
जब शाम अंधेरे में सोती है,
तब, क्या उदासी खुबसूरत नही होती है?

Tuesday, April 19, 2011

बार बार खा कर धोखा

हर बार
बार बार
खा कर
धोखा ,भी
ना होश आया
हर बार ना
जाने हमने क्यों
हारते हुए पर
ही दांव लगाया
सोचा ,होगा साथ
मुड के देखेगा वो
पर आहट भी
ना हुई
और वो लाँघ सब
सीमायें बढ़ता ही
आया ...
और कर गया
तार तार मेरा स्वाभिमान
और मेरे हिस्से में फिर
इंतजार ही आया