Monday, March 30, 2009

ऐसा वादा न कर मुझसे




ऐसा वादा न कर मुझसे की तू निभा न सके,
इतना दूर न जा की कभी मुझ पे हक़ जता न सके,


गलत्फमियों से न लगा नफरत की आग,
की चाह कर भी तू बुझा न सके,


न खीच दिल के आईने पे कुछ ऐसी रेखाएं जो चेहरा बदल दे,
की अपनी ही सूरत तू धडकनों को कभी दिखा न सके,


न बांध ज़माने के रिश्तों में मासूम प्यार को तू आज,
की कल खुदा सी मोहब्बत के जस्बातों को तू कुछ समझा न सके,


है दम तेरी नफरत में तो छोड़ दे तस्बूर में भी मेरा ख्याल,
कहीं ऐसा न हो एक पल के लिए भी तेरी साँसे मुझे भुला न सके,


नामो निशा भी न छोड़ तू मेरी किसी निशानी का अपने पास,
लेकिन वक़्त के हाथ तेरे चेहरे से मेरे प्यार का निशा मिटा न सके,


सजा दिया नए रिश्तो की रौशनी ने मन तेरा जीवन,
पर यादों के लम्हों की दाल से ये मेरा नाम हाथ न सके,


इंसा से लेके खुदा तक सबने जिसे मिटाना चाहा
ऐसी मोहब्बत को भुलाने के लिए हम खुद को मन न सके,


न कर इतना शर्मिंदा मेरी मोहब्बत को आज,
की कल तू इस इश्क को अपने दिलके महल में सजा न सके.

Thursday, March 26, 2009

सीने से आ के लग भी जा


सीने से आ के लग भी जा

काबिल नही मै आपके, इसमे तो शक़ नही
दिल तोडने का लेकिन, तुमको भी हक़ नही

नज़रो की प्यास बुझ गयी, दिल को भी मिल रहा सुख
होठो को चूम लेने दे, बाहे झटक नही

बस एक पल की बात है, कितनी हंसीन रात है,
चूनकर सरकने दे जरा, तू खुद सरक नही

तेरा दिल भी बेकरार है, तुझको भी मुझसे प्यार है,
सीने से आ के लग भी जा, अब यूं झिझक नही

Friday, March 6, 2009

कितना पागल है ये दिल


कितना पागल है ये दिल
कितना पागल है ये दिल
हवा मे तुम्हारा पैगाम ढूंढता है
इस जगह मे तुम्हारा निशान ढूंढता है
आसमान मे तुम्हारा ये नाम ढूंढता है
सितारे मगर बताते नही
नज़ारे यहाँ के मानते नही
झोंके कभी कुछ जताते नही
ये इशारे भी दिल को समझाते नही
विराने मे तुम्हारे ये साथ ढूंढता है
कितना पागल है ये दिल
विराने है हमारे
तुम हमारे नही

Wednesday, March 4, 2009

आखरी मुलाकात

आज जाने से पहेले उसने भी कुछ कहा था
गम का थोड़ा सा असर उस पेर भी हो रहा था
चुप होने से पहेले उन के लब हिले थे
उस खामोशी के नगमे हम ने भी सुने थे

एक लंबा दयरा सा बन गया अचानक
जोर जोर से दे रहा था ये दिल सिने पर दस्तक
गुज़र गई वो शाम हम कुछ भी ना कहेना पाए
निगालेंगे इन अरमानों को अब रातों के साये

नज़रों के सामने एक धुंद सी छाई थी
फिर एक बात पुरानी काही से याद आई थी
लगा .....कार रहे थे हम अपने आप ही से बाते
हमने फिर देखी उनकी परछाई जाते जाते

Tuesday, March 3, 2009

ज़िन्दगी प्यारी सही लेकिन हमे मरना तो है!

लब पे पाबन्दी नही एहसास पे पहरा तो है
फिर भी अहल-ए-दिल को अहवाल-ए-बशर कहना तो है

अपनी गैरत बेच डालें अपना मसलाक छोड दें
रहनुमाओं मे भी कुछ लोगो को ये मन्शा तो है

है जिन्हे सब से ज़्यादा दावा-ए-हुब्ब-ए-वतन
आज उन की वजह से हुब्ब-ए-वतन रुसवा तो है

बुझ रहे हैं एक एक कर के अकीकदों के दिये
इस अन्धेरे का भी लेकिन सामना करना तो है

झुठ क्यू बोलें फ़रोग-ए-मस्लहत के नाम पर
ज़िन्दगी प्यारी सही लेकिन हमे मरना तो है!

किसी और को दोस्त बनाने की ज़रूरत नही

रुला ना दीजिएगा...
यू चुप रहके सज़ा ना दीजिएगा...
ना दे सके ख़ुशी, तो ग़म ही सही...
पर दोस्त बना के यूही भुला ना दीजिएगा...

खुदा ने दोस्त को दोस्त से मिलाया...
दोस्तो के लिए दोस्ती का रिस्ता बनाया...

पर कहते है दोस्ती रहेगी उसकी क़ायम...
जिसने दोस्ती को दिल से निभाया...

अब और मंज़िल पाने की हसरत नही...
किसी की याद मे मर जाने की फ़ितरत नही...

आप जैसे दोस्त जबसे मिले...
किसी और को दोस्त बनाने की ज़रूरत नही...!!!