मोहब्बत तो हमने भी की
पर मेरे महबूब ने मेरे
साथ बहुत बेरूख़ी की
वो इस दिल से दूर गई भी नही
ओर मेरे दिल के क़रीब भी नही
जानती है वो तड़पता हूँ मैं
पर मेरे ज़ख़्मो को वो निहारती भी नही
मैं खड़ा हूँ बीच मझदार मैं
ओर मेरी इस क्स्ती का कोई साहिल भी नही
डूबने वाला हूँ मैं इस दरिया मैं
ओर मुझे उस पार उतरने की अब
कोई चाहत भी नही
दर्द के इस समुद्र मैं जी रहा हूँ मैं
मुझे अब किसी खुशी की आरज़ू भी नही
हँसते हैं कुछ लोग जानकार मेरे
एक तरफ़ा प्यार को
पर मुझे अब इस ज़माने की कोई परवा नही
अभी तो मेरे ज़ख़्मो का दर्द ताज़ा है
ओर मेरी आँखो मैं बरीसों की कमी भी नही
मेरे साथ चलने के लिए मेरी तन्हाई हे काफ़ी है
मुझे किसी ओर के सहारे की अब ज़रूरत भी नही .
2 comments:
ye bhi pahele read kiya hai adab mae bhi aapne post kiya tha.... bahut accha hai... too good hai ji...
han jo maine vanha likhta hun vahi fir idhar post kar deta hun.
abhi nai likhne ka time nahi mil pa rah ahai na. exam ke baad. dekhunga.
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