Tuesday, May 8, 2007

मोहब्बत

मोहब्बत तो हमने भी की
पर मेरे महबूब ने मेरे
साथ बहुत बेरूख़ी की
वो इस दिल से दूर गई भी नही
ओर मेरे दिल के क़रीब भी नही
जानती है वो तड़पता हूँ मैं
पर मेरे ज़ख़्मो को वो निहारती भी नही

मैं खड़ा हूँ बीच मझदार मैं
ओर मेरी इस क्स्ती का कोई साहिल भी नही
डूबने वाला हूँ मैं इस दरिया मैं
ओर मुझे उस पार उतरने की अब
कोई चाहत भी नही

दर्द के इस समुद्र मैं जी रहा हूँ मैं
मुझे अब किसी खुशी की आरज़ू भी नही
हँसते हैं कुछ लोग जानकार मेरे
एक तरफ़ा प्यार को
पर मुझे अब इस ज़माने की कोई परवा नही

अभी तो मेरे ज़ख़्मो का दर्द ताज़ा है
ओर मेरी आँखो मैं बरीसों की कमी भी नही
मेरे साथ चलने के लिए मेरी तन्हाई हे काफ़ी है
मुझे किसी ओर के सहारे की अब ज़रूरत भी नही .

2 comments:

Preeti said...

ye bhi pahele read kiya hai adab mae bhi aapne post kiya tha.... bahut accha hai... too good hai ji...

Neeraj K. Rajput said...

han jo maine vanha likhta hun vahi fir idhar post kar deta hun.

abhi nai likhne ka time nahi mil pa rah ahai na. exam ke baad. dekhunga.