Tuesday, May 31, 2011

जो तू नहीं होती

मै जो भी हूँ तेरी चाहत के पागलपन का मतलब है,
नहीं मिट्टी के इस पुतले मै इतना दम नहीं होता,
हाँ तुने जिंदगी मेरी बदल दी है मगर सुन ले,
अगर जो तू नहीं होती,मै फिर भी कम नहीं होता,


तेरी चाहत मै सीखा था के क्या है प्यार का मतलब,
तेरी यादों ने बतलाया के क्या दुनिया मै हूँ में अब.
हाँ तेरे प्यार के दम पर मै मजधारों से लौटा हूँ .
मगर तू ना भी होती तो, मै सागर पार कर लेता.


तेरे ही साथ सीखा है, भरी बरसात मै चलना,
तेरे दीदार के खातिर वो दिनभर धूप मै तपना.
तुझे पाने कि जिद का दिल मै शोलों की तरह जलना.
हाँ तेरे प्यार मै तपकर मै कुंदन सा निखर आया.

मगर तू ना भी मिलती तो भी, सोना ही निकलता में.

Saturday, May 21, 2011

आज फिर से रोने को दिल चाहता है

आज फिर से रोने को दिल चाहता है...
बीती बातों में खोने को दिल चाहता है...
याद आती है मुझको वो बातें पुरानी...
वो भोली सी मस्ती,वो प्यारी कहानी...
उन्ही यादों में फिर से खोने को दिल चाहता है...
आज फिर से रोने को मेरा दिल चाहता है...


मिले थे कभी हम इस अजनबी शहर में...
चले हम संग -संग अनजाने सफ़र...
पलकों में थे सपने,दिल में एक उमंग थी...
रास्ता था मुश्किल,ख़ुद से हर पल एक नयी जंग थी...
अब तो बस फिर यादें ही रह जाएँगी...
कुछ बातें रह जाएगी,वो रातें रह जाएँगी...
उन्ही रातों में फिर से सोने को जी चाहता है...
आज फिर से रोने को दिल चाहता है...


खैर मिल पाएगा नही अब वो कंधा...
जिस पर सर रख कर हम रो सके...
कुछ तुमसे कह सके ,कुछ तुमको सुन सके...
हँसता हूँ फिर भी आँखों में नमी है...
रोने के लिए अब आँखों में आँसू भी नही है...
पलकों का समंडर भी अब सूना लगता है...
तन्हा मुझको अब घर का आईना लगता है...
अब हर पल ख़ुद से बचने को दिल चाहता है...
आज फिर से रोने को दिल चाहता है...


कितने अजीब थे वो मस्ती भरे दिन...
सपने थे आँखों में नये रोज़ दिन...
बातों में हर पल थी शहद सी मिठास..
हमे दूरियों का ना था एहसास...
खेले थे हम हैर पल जिन खिलौने से...
उन खिलौने से फिर खेलने को दिल चाहता है...
आज फिर से रोने को दिल चाहता है...

आज फिर से रोने को दिल चाहता है

आज फिर से रोने को दिल चाहता है

आज फिर से रोने को दिल चाहता है...
बीती बातों में खोने को दिल चाहता है...
याद आती है मुझको वो बातें पुरानी...
वो भोली सी मस्ती,वो प्यारी कहानी...
उन्ही यादों में फिर से खोने को दिल चाहता है...
आज फिर से रोने को मेरा दिल चाहता है...






मिले थे कभी हम इस अजनबी शहर में...
चले हम संग -संग अनजाने सफ़र...
पलकों में थे सपने,दिल में एक उमंग थी...
रास्ता था मुश्किल,ख़ुद से हर पल एक नयी जंग थी...
अब तो बस फिर यादें ही रह जाएँगी...
कुछ बातें रह जाएगी,वो रातें रह जाएँगी...
उन्ही रातों में फिर से सोने को जी चाहता है...
आज फिर से रोने को दिल चाहता है...




खैर मिल पाएगा नही अब वो कंधा...
जिस पर सर रख कर हम रो सके...
कुछ तुमसे कह सके ,कुछ तुमको सुन सके...
हँसता हूँ फिर भी आँखों में नमी है...
रोने के लिए अब आँखों में आँसू भी नही है...
पलकों का समंडर भी अब सूना लगता है...
तन्हा मुझको अब घर का आईना लगता है...
अब हर पल ख़ुद से बचने को दिल चाहता है...
आज फिर से रोने को दिल चाहता है...





कितने अजीब थे वो मस्ती भरे दिन...
सपने थे आँखों में नये रोज़ दिन...
बातों में हर पल थी शहद सी मिठास..
हमे दूरियों का ना था एहसास...
खेले थे हम हैर पल जिन खिलौने से...
उन खिलौने से फिर खेलने को दिल चाहता है...
आज फिर से रोने को दिल चाहता है...

Wednesday, May 18, 2011

न जाने तेरी याद क्यों


न जाने तेरी याद क्यों फिर से आने लगी है,
दिल को बेवक्त बेवजह फिर से सताने लगी है,

खुश हो जाता है दिल मेरा अब ये सोच कर,
की तू मुझे और मेरी यादो को भुलाने लगी है,

शायद ये यादे मेरी तुजे बुहत सताने लगी है,
इसी लिए तू मेरा नाम अपने दिल से मिटाने लगी है,

अपने आपको हर-पल मुझसे छुपाने लगी है,
आहिस्ता-आहिस्ता मुझे गैर बनाने लगी है,

तुजसे बिचाद ने का गम नहीं है अब मुझे,
तन्हाई मुझे अब इस कदर बहाने लगी है. .

~*क्या उदासी खुबसूरत नही होती है*~



अम्बुधि लहरों के शोर में
असीम शान्ति की अनुभूति लिए,
अपनी लालिमा के ज़ोर से
अम्बर के साथ – लाल सागर को किए,
विहगों के होड़ को
घर लौट जाने का संदेसा दिए,
दिनभर की भाग दौड़ को
संध्या में थक जाने के लिए
दूर क्षितिज के मोड़ पे
सूरज को डूब जाते देखा!

तब, तट पे बैठे
इस दृश्य को देखते
नम आँखें लिए
बाजुओं को आजानुओं से टेकते
इस व्याकुल मन में
एक विचार आया!
किंतु उस उलझन का,
परामर्श आज भी नही पाया!
की जब विदाई में एक दुल्हन रोती है,
जब बिन बरखा-दिन में धुप खोती है,
जब शाम अंधेरे में सोती है,
तब, क्या उदासी खुबसूरत नही होती है?