Wednesday, May 30, 2007

बेनाम सा ये दर्द

बेनाम सा ये दर्द...ठहर क्यूं नही जाता...
जो बीत गया है वो... गुज़र क्यूं नही जाता..

सब कुछ तो है...फिर भी क्या ढूँढती है निगाहें..
कुछ बात है उस छलक मैं...हर वक़्त वही क्यूं नज़र आता है

चाहता हूँ जिसे दिल से..
चहकार भी उसे क्यूं नही बता सकता

वो एक ही चेहरा तो नही सारे जहाँ मैं...
जो दूर है वो दिल से उतर क्यूं नही जाता

वो नाम जो बरसों से सजाया..ना चेहरा ना आवाज़...
वो सिर्फ़ ख्वाब है अगर तो...बिखर क्यूं नही जाता

बेनाम सा ये दर्द...ठहर क्यूं नही जाता !

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