एक राह पर सारी उमर चले
एक दूजे को ना समझ सके
जीवन का सफ़र अनजान सफ़र
बे_खवाइश बे_आराम सफ़र
जीवन के किसी भी दुख सुख मैं
वो मेरा साथ सरीक नही
हम दोनो मैं एक रिश्ता है
पर ज्ज़बातों की तेहरीक नहीं
जारी है मगर अनजान सफ़र
मैं सोचता हूँ एक दिन यूँही
वो मुझ से दूर हो जाएगी
मुझे इस अजनबी सफ़र मैं अकेला
झोड़ जाएगी
फिर लोग कहेगें इनका
ये रिश्ता कितना सच्चा था
पर किस को ख़बर, सारा जीवन
वोह तन्हा थी...
मैं तन्हा था...
2 comments:
bahut accha likha hai... its beautiful..
thx thx a lot.
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