Thursday, May 10, 2007

सफ़र

एक राह पर सारी उमर चले
एक दूजे को ना समझ सके
जीवन का सफ़र अनजान सफ़र
बे_खवाइश बे_आराम सफ़र

जीवन के किसी भी दुख सुख मैं
वो मेरा साथ सरीक नही
हम दोनो मैं एक रिश्ता है
पर ज्ज़बातों की तेहरीक नहीं

जारी है मगर अनजान सफ़र
मैं सोचता हूँ एक दिन यूँही
वो मुझ से दूर हो जाएगी
मुझे इस अजनबी सफ़र मैं अकेला
झोड़ जाएगी

फिर लोग कहेगें इनका
ये रिश्ता कितना सच्चा था
पर किस को ख़बर, सारा जीवन
वोह तन्हा थी...
मैं तन्हा था...

2 comments:

Preeti said...

bahut accha likha hai... its beautiful..

Neeraj K. Rajput said...

thx thx a lot.