Friday, May 25, 2007

एक दिया

इस ज़माने से ना हम कोई गिला रखेंगे
दिल लगायेंगें तो ना शर्त-ए-वफ़ा रखेगें


ना दिखाएँगें कभी दिल पे लगे ज़ख़्म उनेहे
दर्द उठेगा मगर दिल को दबाए रखेंगें

जान दे देगें अगर एक इशारा कर दे
हम उसे अपने लिए भी ना बचा के रखेंगें

सब हटा देगें तेरी राह की रुकावट हमदम
घर के दरवज़ाय को हर वक़्त खुला रखगें

उनकी हर बात को भूले से ना भूलेंगें कभी
उनकी यादों को भी सीने से लगाए रखेंगें

टूट भी जाएगी उमीद जो तेरे आने की
एक दिया फिर भी हवाओं मैं जला के रखेंगें.

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