मैं एक दिन अपना ये सफ़र पूरा करूँगा
ओर तुझे भुला दूँगा.....
मरूंगा ख़ुद भी
ओर तुझे भी आखरी सज़ा दूँगा...
इसी ख़याल मैं गुज़री हैं कई शाम ......
के दर्द ह्द से बड़ेगा तो मुस्करा दूँगा....
मेरी दिल की तड़प से कैसे दूर थे तुम...
हर वक़्त यही सोचते हूँ जाने कहाँ थे तुम..
तू आसमान की सूरत है गिर पड़ेगी कभी...
ज़मीन हूँ मैं भी, मगर तुझे असरा दूँगा...
बड़ा रही है मेरा दर्द, निशानियाँ तेरी.....
मैं तेरे सारे खत तेरी हर तस्वीर तक जला दूँगा...
3 comments:
thx sir
its too good niks... bahut accha likha hai... keep it up!
thx again dear.
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