मासूम सी मोहब्बत का बस इतना सा फसना है
काग़ज़ की हवेली है बारिश का ज़माना है
क्या सर्ते-ए-मोहब्बत है क्या सर्ते-ए ज़माना है
आवाज़ भी ज़ख़्मी है ओर एक गीत भी गाना है
उस पार उतरने की उमीढ़ बहुत कम है
कसती भी पुरानी है ओर तूफ़ान भी आना है
समझे या ना समझे वो अंदाज़-ए-मोहब्बत का
एक ख़ास को अपनी आँखो से एक शेर भी सुनना है
2 comments:
nice.. keep it up
THX DEAR.
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