मैने उस से कुछ भी कहा तो नही है
मगर हाल-ए-दिल उस से छुपा तो नही है
क्यूं ऐसे चुप है वो जुदाई के वक़्त
कहीं प्यार उस ने भी किया तो नही है
इस से पहले की वो देखे मेरी आँख नम है
और पूछ बैठे की ऐसा क्या ग़म है
मैं कर के बहाना ख़ुद पूछ लू ये
मेरी आँख मे कुछ गिरा तो नही है
कुछ देर ऐसे ही ख़ामोश होके
मुझे प्यार करती है बोले वो रो के
ये सोच मुस्करा लूँ की काश ऐसा होता
ओर ये सोच कर
रो पडू की प्यार उसे भी हुआ तो नही है
5 comments:
नीरज जी आपने तो सच में हाल-ए-दिल बया कर दिया । अच्छी कविता है। पढ़ू को पडू कर लीजिये
Rajesh roshan
क्यूं कोशिश की बेदिलों को हाले दिल सुनाने की
जैसे जहमत उठाई हो पानी में आग लगाने की
क्या कविता है…
सहल-उज्वल-प्रीत का संगम…।
मैं तो पढ़ता ही रहा और हाल-ए-दिल को भी देखता रहा।
इस से पहले की वो देखे मेरी आँख नम है
और पूछ बैठे की ऐसा क्या ग़म है
मैं कर के बहाना ख़ुद पूछ लू ये
मेरी आँख मे कुछ गिरा तो नही है|
वाह!!!
*** राजीव रंजन प्रसाद
राजेश जी आप का बहुत बहुत सुक्रिया. अक्सर हिंदी लिखने मैं ग़लती हो ही जाती है !
मोहिन्दर कुमार जी आप ने तो चार चाँद लगा दिए जी! सुक्रिया
राजीव जी आप का भी तहे दिल से सुक्रिया !
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