Wednesday, June 27, 2007

नज़र नही आता

सितारों से भरे आसमान मे
वो आफ़ताब नज़र नही आता
बेगानो की इस मेहफ़ील मे
वो अपना सा चेहरा नज़र नही आता

ज़िंदगी गुज़र जाती है ख्वाबों के सहारे
जिस ख्वाब की कोई ताबीर हो वो नज़र नही आता
यूँ तो कट जानी है सफ़र-ए-ज़िंदगी
मंज़िल तक ले चले वो हमसफ़र नज़र नही आता

ज़ख़्म दे जाए जो काँटे मिल जाते हैं बेसुमार
महका दे खुसबू से ज़िंदगी को वो फूल नज़र नही आता
क़ब्र पर रोने आ गये दोस्त और दुशमन कई
मगर रूह को सुकून दे जाए जो वो क़ातिल नज़र नही आता

1 comment:

Rajesh Roshan said...

हमेशा की तरह अच्छा लेकिन वर्तनी में गलती