सितारों से भरे आसमान मे
वो आफ़ताब नज़र नही आता
बेगानो की इस मेहफ़ील मे
वो अपना सा चेहरा नज़र नही आता
ज़िंदगी गुज़र जाती है ख्वाबों के सहारे
जिस ख्वाब की कोई ताबीर हो वो नज़र नही आता
यूँ तो कट जानी है सफ़र-ए-ज़िंदगी
मंज़िल तक ले चले वो हमसफ़र नज़र नही आता
ज़ख़्म दे जाए जो काँटे मिल जाते हैं बेसुमार
महका दे खुसबू से ज़िंदगी को वो फूल नज़र नही आता
क़ब्र पर रोने आ गये दोस्त और दुशमन कई
मगर रूह को सुकून दे जाए जो वो क़ातिल नज़र नही आता
1 comment:
हमेशा की तरह अच्छा लेकिन वर्तनी में गलती
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