Friday, June 15, 2007

ज़िन्दगी मेरी

नम आँखों से लिखी ज़िन्दगी मेरी
सूखी पड़ी हुई है ज़मीन पर

तिज़ारत सी बनी हुई ज़िन्दगी मेरी
लूटी पड़ी हुई है ज़मीन पर

वक़्त के हाथों में खंजर है
और कुछ दूर पर यही ज़िन्दगी मेरी,
सूनी पड़ी हुई है ज़मीन पर

किसी ज़र्रे में कसर बाक़ी है शायद
जो नज़रों के सामने ज़िन्दगी मेरी,
अधूरी पड़ी हुई है ज़मीन पर

चँद लम्हों से ही तो शिकायत थी
फिर क्यूं ये मेरी पूरी ज़िन्दगी,
रूठी पड़ी हुई है ज़मीन पर .....

2 comments:

राजीव रंजन प्रसाद said...

नम आँखों से लिखी ज़िन्दगी मेरी
सूखी पड़ी हुई है ज़मीन पर

बहुत खूब। इस रचना को थोडा और समय दें, निखर उठेगी।

*** राजीव रंजन प्रसाद

Divine India said...

इस रचना में गहरी संवेदना दिख रही है…बधाई स्वीकारे!!!