नम आँखों से लिखी ज़िन्दगी मेरी
सूखी पड़ी हुई है ज़मीन पर
तिज़ारत सी बनी हुई ज़िन्दगी मेरी
लूटी पड़ी हुई है ज़मीन पर
वक़्त के हाथों में खंजर है
और कुछ दूर पर यही ज़िन्दगी मेरी,
सूनी पड़ी हुई है ज़मीन पर
किसी ज़र्रे में कसर बाक़ी है शायद
जो नज़रों के सामने ज़िन्दगी मेरी,
अधूरी पड़ी हुई है ज़मीन पर
चँद लम्हों से ही तो शिकायत थी
फिर क्यूं ये मेरी पूरी ज़िन्दगी,
रूठी पड़ी हुई है ज़मीन पर .....
2 comments:
नम आँखों से लिखी ज़िन्दगी मेरी
सूखी पड़ी हुई है ज़मीन पर
बहुत खूब। इस रचना को थोडा और समय दें, निखर उठेगी।
*** राजीव रंजन प्रसाद
इस रचना में गहरी संवेदना दिख रही है…बधाई स्वीकारे!!!
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