Tuesday, June 12, 2007

हाल-ए-दिल

मैने उस से कुछ भी कहा तो नही है
मगर हाल-ए-दिल उस से छुपा तो नही है
क्यूं ऐसे चुप है वो जुदाई के वक़्त
कहीं प्यार उस ने भी किया तो नही है

इस से पहले की वो देखे मेरी आँख नम है
और पूछ बैठे की ऐसा क्या ग़म है
मैं कर के बहाना ख़ुद पूछ लू ये
मेरी आँख मे कुछ गिरा तो नही है

कुछ देर ऐसे ही ख़ामोश होके
मुझे प्यार करती है बोले वो रो के
ये सोच मुस्करा लूँ की काश ऐसा होता
ओर ये सोच कर
रो पडू की प्यार उसे भी हुआ तो नही है

5 comments:

Rajesh Roshan said...

नीरज जी आपने तो सच में हाल-ए-दिल बया कर दिया । अच्छी कविता है। पढ़ू को पडू कर लीजिये

Rajesh roshan

Mohinder56 said...

क्यूं कोशिश की बेदिलों को हाले दिल सुनाने की
जैसे जहमत उठाई हो पानी में आग लगाने की

Divine India said...

क्या कविता है…
सहल-उज्वल-प्रीत का संगम…।
मैं तो पढ़ता ही रहा और हाल-ए-दिल को भी देखता रहा।

राजीव रंजन प्रसाद said...

इस से पहले की वो देखे मेरी आँख नम है
और पूछ बैठे की ऐसा क्या ग़म है
मैं कर के बहाना ख़ुद पूछ लू ये
मेरी आँख मे कुछ गिरा तो नही है|

वाह!!!

*** राजीव रंजन प्रसाद

Neeraj K. Rajput said...

राजेश जी आप का बहुत बहुत सुक्रिया. अक्सर हिंदी लिखने मैं ग़लती हो ही जाती है !

मोहिन्दर कुमार जी आप ने तो चार चाँद लगा दिए जी! सुक्रिया

राजीव जी आप का भी तहे दिल से सुक्रिया !