अश्को के मोती जो धागे मैं पिरोये हम ने
वो टूट कर बिखर चुके हैं आज
ये कैसी लगी है चोट इस दिल पर
की अंदर तक टूट कर बिखर चुके हैं आज
जो सज़ाये थे सपने पलको पर हम ने
एक हे पल मैं टूट कर बिखर चुके हैं आज
जो कहते थे रहेगें साथ हमारे आख़िर तक
ना जाने कियूँ एक पल मैं हे वो पराये हुए हैं आज
रह गुज़र ज़िंदगी से ना कोई शिकायत है
फिर भी एक अनजान सफ़र पर निकल चुके हैं आज
कहाँ ले जाएगें ये क़दम ना कोई ख़बर है हमें
बस एक अनदेखी मंज़िल की तलाश मैं निकल चुके हैं आज
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कहाँ ले जाएगें ये क़दम ना कोई ख़बर है हमें
बस एक अनदेखी मंज़िल की तलाश मैं निकल चुके हैं आज
अच्छी रचना है नीरज जी।
*** राजीव रंजन प्रसाद
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