Wednesday, June 13, 2007

देखते हैं

चलो आज फिर एक ग़लती कर के देखते हैं
आज फिर उनसे मोहब्बत करके देखते हैं

उनके दिल मैं चाहत है या नही
आज फिर उन से मुलाक़ात करके देखते हैं

भरी महफ़िल मैं उढ़ा दी उंगली मेरी तरफ़
आज उन का हर इल्ज़ाम सह कर भी देखते हैं

कितनी बदल गई है वो मुछसे दूर रह कर
आज उस की महफ़िल मैं जा कर देखते हैं

दुआ से हर चीज़ मिलती है खुदा से
आज फिर तुछे उस खुदा से माँग कर देखते हैं

वो जो इस दिल मैं है पर मेरी नही
आज ये बात इस दिल को समझा कर देखते हैं

चलो आज फिर एक ग़लती कर के देखते हैं

2 comments:

Anonymous said...

चलो आज फिर एक ग़लती कर के देखते हैं

ये गलती करने का मन तो हमारा भी है।
भावो के हिसाब से आपने कोई गलती नही की लेकनि कही कही शब्‍दो मे गलती जरूर की है।

Anonymous said...

सायद टाईप की गलती है लेकिन आप इसमे सुधार कर सकते है पाठक अपनी गलती नही सुधार सकता इसमे उनकी मदद के लिए कुछ उपाय किजिये। जैसे मेने एक गलती की और पोस्ट कर दी अब इसका सूधार पाठक के बस मे नही। एक गलती से पाठक के भाव बदल जाते है।