Monday, June 11, 2007

कितना चाहता हू मैं

क्या आपको बताना भी पड़ेगा
की कितना चाहता हूँ आपको अब
हाँ ... मुश्किल है मगर
सब कुछ कहना ही पड़ेगा मुझे अब

पता नही आप प्यार करेंगे की नही
पर दिल से नाम आपका ना मिटेगा अब
अनजान बन कर भी आपको
ज़िंदगी भर चाहता रहेंगा ये दिल अब

साथ रहने की जो ज़ुस्तुजू थी
उसको दिल मे ही रखूँगा अब
दूर रह कर आपकी सर की कसम
खा खा कर अपने करम करूँगा अब

आप नही पर आपकी याद तो आएगी
आपके याद के सहारे ही जी जाउंगा अब
आपको भूल जाने की
हर कोशिश करूँगा अब

हक़ीक़त ना आपको पता ना मुझे
हक़ीक़त जान कर भी क्या बदल जाएगा अब
वफ़ाओं की बात तो करता ही नही मैं
आपको तो बेवफ़ा भी नही कह सकता अब

एक मुलाक़ात भी ना कर पाई जाने से पेहले
मिल कैसे पाउंगा आपसे अब
आपका चेहरा चाँद है अंधेरी रात मे
सिर्फ़ ये चाँद ही तो रह गया है मेरे पास अब

4 comments:

राजीव रंजन प्रसाद said...

कुछ अशुद्धियाँ सुधारें और रचना पर थोडा और समय दें तो यह एक सुन्दर रचना हो सकती है।

*** राजीव रंजन प्रसाद

Rajesh Roshan said...

राजीव जी ने सही लिखा है । आप अपनी वर्तनी थोड़ी सुधार ले। वैसे अच्छा प्रयास है ।

Reetesh Gupta said...

अच्छा लिखा है ...बधाई

Neeraj K. Rajput said...

आपका बहुत सुक्रिया रचना पड़ने के लिए
मैं अशुद्धियाँ सुधारने की कोशिश करूँगा.