क्या ख़बर तुम को दोस्ती क्या है
ये रोशनी भी है अंधेरा भी है
ख़्वाहीसों से भरा जज़ीरा भी है
बहुत अनमोल एक हीरा भी है
दोस्ती यूँ तौ माया जाल भी है
इक हक़ीक़त भी है ख़याल भी है
कभी शाम तो कभी सुबह भी है
कभी ज़मीन कभी आसमान भी है
दोस्ती झूठ भी है सच भी है
दिल मैं रह जाए तो कसक भी है
कभी ये जीत कभी हार भी है
दोस्ती साज़ भी है संगीत भी है
शेर, नज़म ओर गीत भी है
वफ़ा क्या है वफ़ा भी दोस्ती ही है
दिल से निकली हैर दुआ भी दोस्ती ही है
बस इतना समझ ले तू प्यार की इंतहा भी दोस्ती ही है
3 comments:
बढ़िया लिखा है.
पति पत्नी भी एक दूसरे से कुछ न कुछ छुपाते हैं। अक्सर कोई अपने माँ, बाप, भाई, बहन.. हर किसी से कुछ न कुछ छुपाता है। अन्तर के सारे राज़ तो सच्चे दोस्त को ही बताए जाते हैं। दोस्त वही है जिस पर इतना विश्वास और भरोसा हो।
बढ़िया है भाई!! लिखते रहो.
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