यूँ तन्हा जीने की मुझे आदत सी हो गयी है
अनजान रास्तों पे चलने की आदत सी हो गयी है
वो मेरी मोहब्बत से रहें बे-ख़बर ता उमर
मुझे ये दुआ माँगने की आदत सी हो गयी है
कब तक झूठलाउंगा उन से मोहब्बत अपनी
मेरी आँखों को सच बोलने की आदत सी हो गयी है
ना जाने क्यों शाम ढलते ही ये आँखें भीग जाती हैं
मुझे इस चेहरे को अशक़ो में चुपाने की आदत सी हो गयी है
आसमा में चमकता हर सीतारा ये गवाही देगा
मुझे तुम्हारी यादों में नींदें गवाने की आदत सी हो गयी है
इस दुनिया में शायद मेरी मोहब्बत को कोई ना समझ सके
लोगो को मुझे ना समझपाने ने की आदत सी हो गयी है
महफ़िल में हर शख्स ये गिला करता है
मुझे तन्हाईओं में डूबने की आदत सी हो गयी है
1 comment:
भाव बढ़िया हैं.
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