अजब मुझ को लगती है ज़िंदगी आप क बिग़ैर,
खो गयी है मेरी हेर ख़ुशी आप क बिग़ैर,
हर पल ही उदास रहता है अब तो दिल मेरा,
होता नही कभी शाद अब कभी आप क बिग़ैर,
मैं कैसे लगाउ दिल ये और किसी से?,
कोई अच्छा नही है लगता जाना .... आप क बिग़ैर,
आप लौट आओ तो लौट आए हर ख़ुशी मेरी,
ज़िंदगी सज़ा बनी है आप क बिग़ैर,
काश आप समझ जाए कैसे डसती हैं तन्हाईयाँ,
एक पल में हज़ारों दर्द सहता हूँ आप क बिग़ैर !
2 comments:
नीरज जी,रचना बहुत भावपूर्ण और बढिया ढंग से लिखी है। बधाई।
bahoot khuub niks..... bahoot aacha likha hai....
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