आ भी जाओ के ज़िंदगी कम है
तुम नही हो तो हर खुशी क़म है
वादा कर के ये कौन आया नही
शहर में आज रौशनी कम है
जाने क्या हो गया है मौसम को
धूप बहुत ओर चाँदनी क़म है
आईना देख कर ख़याल आया
आज कल उन की दोस्ती कम है
तेरे दम से ही मैं मुकम्मल हूँ
अब आ भी जाओ के ज़िंदगी क़म है
6 comments:
thanks for writing here in my blog,plzz providing ur email id so that i can allow to post over here,
thanking you
vibhawary ranjan
कविता आपने बहुत अच्छी लिखी है भैया! धूप बहुत और चान्दनी कम.
धूप धैर्य का इम्तिहान है और चांदनी प्रतिफल! समय का अंतर तो होगा ही चान्दनी बढ़ने में!
अच्छे भाव हैं!! इन्तजार करें, फल अच्छा मिलेगा-लिखते रहें. :)
नीरज जी क्या यह आपकी रचना है। दरअसल चंदन दास की आवाज में इस गज़ल का ऑडियो उपलब्ध है अत: मैने जानना चाहा..
*** राजीव रंजन प्रसाद
rajeev ji ye meri rachna nahi hai. ye gazal muchhe bahut pasand hai isliye post ki.
दूआ लगे हमारी की जिन्दगी कम ना हो।
वो आये ना आये जिन्दगी खत्म ना हो कभी।।
बहूत खूब अच्छा लिखा है।
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