Tuesday, July 17, 2007

ये सावन

ये कैसी है इस बार की बारिश
कुछ तो नया सा है ये सावन

पहले तो कभी ना भीगे हम
ना डूबे किसी की आँखों मैं हम

कहीं बह ना जाएँ तेरी बातों मैं
कहीं खो ना जाएँ तेरी बाहों मैं हम

ना तू इतने क़रीब आ
की रोके से भी ना रुके फिर हम

है कुछ इस बार का ये बेईमान मौसम
कुछ नया सा ये इस बार का ये सावन

3 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

नीरज जी,बढिया गीत है।बधाई।

Satyendra Prasad Srivastava said...

कहीं प्यार तो नहीं हो गया? बहुत अच्छा गीत है।

Anonymous said...

बहूत खुब लिखा आपने सचमुच इस बार का सावन बहूत अच्छा गुजरेगा। भाव और लहर दोना अच्‍छी है।