इस बार की बारिश का ये कैसा समा है
तेरी आँखो मैं भी कुछ नशा है
बड़ रही हैं धड़कने
ना जाने होना आज क्या है
बहके से हैं ये क़दम अपने
दिल मैं कुछ तूफ़ान जवान हैं
रख कुछ फ़ासले मुझसे
कहीं हो ना जाए कोई गुनाह हम से
है कुछ इस बार का ये बेईमान मौसम
कुछ नया सा हैं इस बार का ये सावन.
1 comment:
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