Friday, September 4, 2009

खामोश निगाहों का सपना तुम हो

खामोश निगाहों का सपना तुम हो,
जिसको भुला न सकूं, वो अपना तुम हो,
जिसकी हर बात, मेरी तन्हाईयों को छू ले,
सच ऐ ख्वाब, वो तुम हो,
वो तुम हो, वो तुम हो।

जिसकी धङकन की आवाज़,
सिर्फ मैं सुनूं ,दिन और रात,
जिसके आने की राह तकें,
ये आंखे बार-बार,
जिसकी खुशबू का पता,
बहारें मुझको दें जांए,
सच ऐ ख्वाब वो तुम हो,
वो तुम हो वो तुम हो।

जिसका अफसाना मेरे हयात के,
पैमाने में भरा हो,
जिसको पी कर मेरा गम भी,
दीवाना बन गया हो,
मेरे माज़ी के हर पन्ने पे,
लिखी जिसकी दास्तां,
सच ऐ ख्वाब, वो तुम हो,
वो तुम हो वो तुम हो।

6 comments:

Mithilesh dubey said...

बहुत खुब। सुन्दर रचना

Udan Tashtari said...

वाह!! बहुत बेहतरीन!!

वाणी गीत said...

सुन्दर रचना ..!!

Murari Pareek said...

bahut khub !!!

HAREKRISHNAJI said...

क्या बात है

संजय भास्‍कर said...

सुन्दर रचना ..!!