Friday, February 26, 2010

जब भी देखोगे मुझे इसी हाल में पाओगे,

जब भी देखोगे मुझे इसी हाल में पाओगे,
आँख में आँसू, लबों को हँसता हुआ पाओगे

तुम्हारा तो खैर यकीन है मुझे खुद से ज्यादा,
आँसू दिया है जब आज तो कल भी रुलाओगे

मेरा क्या है? एक अदना-सा आदमी ही तो हूँ
आखिर कब तक मुझे तुम याद रख पाओगे?

मुझे तो अपनी ख़ाक पर भी कोई हक़ नहीं,
हर उम्मीद है झूठी, क्यों कोई उम्मीद दिलाओगे?

2 comments:

Dev said...

ऐसे ही उन्नत लेखों से हिंदी ब्लॉग की सेवा करते रहिये

संजय भास्‍कर said...

मुझे तो अपनी ख़ाक पर भी कोई हक़ नहीं,
हर उम्मीद है झूठी, क्यों कोई उम्मीद दिलाओगे?


अंतिम पंक्तियाँ दिल को छू गयीं....... बहुत सुंदर कविता....