Tuesday, May 20, 2008

करके तन्हा हमें

वो न आया उसे न आना था
कर’के तन्हा हमें जलाना था
जिन’में चिड़ियों का ज़म’घट रह’ता
पेड़ आंगन में वो लगाना था
कुछ तो सेह’रा कि तिश्नगी जाती
एक दरिया येहां बहाना था
क्या उलझ’ना था फिर ज़माने से
जब कि किस्सा व’ही पुरना था
तेरे कुचे में आ गये वरना
हम फ़किरों का क्या ठिकाना था
वो हवायें भी सो गयीं
जिन’को तूफ़ां कोई उठाना था,,,,,,,,,

2 comments:

Manas Path said...

एक दरिया येहां बहाना था
क्या उलझ’ना था फिर ज़माने से

Udan Tashtari said...

बढ़िया है.