Tuesday, December 11, 2007

काश

रूठ जाते हो हर बार खुद ही
कभी हमें भी तो रूठ जाने दिया होता

मनाते हैं हम हर बार ही तुमको
कभी तुमने भी तो हमें मनाया होता

जानते हैं हम की पत्थर हो तुम
कभी तुमने अपने दिल मैं कोई फूल तो खिलाया होता

जब भी मिले हो बस काँटे ही चुभोये हैं
कभी किसी गुल से तो हमें नवाजा होता

ज़ख़्म पर ज़ख़्म दिए हमको
कभी उन पर मरहम तो लगाया होता

माना की तुमको प्यार नही हमसे
पर कभी झुटे ही अपने गले से तो लगाया होता

हम तो भूल जाते इस एक पल मैं हर बात को
कभी प्यार से हमें नाम से बुलाया तो होता.

4 comments:

बालकिशन said...

वाह.
बहुत अच्छे.
लिखना जारी रहे.

अमिताभ मीत said...

अच्छा है भाई. जाने क्यों आज कुछ ज्यादा ही पसंद आया. बहरहाल लिखते रहें.

Keerti Vaidya said...

acha likha hai....

Anonymous said...

aap sab ko bahut bahut dhanywad.