Tuesday, May 20, 2008

कुछ मौसम सपने लगते है

शबनम के कतरो मे कैसे खिज़ा के रंग झलकते है
फूलो के चेहरो से खुशबू के मोती बिखरते है
हवाओ की रवानी से आती है सरगम कर रिमझिम
जब पानी की लहरो से वो अटखेलिया करती आती है
पैरो की कितारो मे फिर ठंडक बसाने आती है
जब सुरज से मिलकर शाम सुनहेरी हो जाती है
कुछ मौसम सपने लगते है कुछ मौसम अपने लगते है
पर दोस्त मिले तुम जैसा तो सब मौसम सच्चे लगते है
ज़िन्दगी की तन्हा लेहरो मे जो दोस्ती के मोती पिरोते है
वो फूलो की तरहा दिल की राहो को मेहकाते है

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