Tuesday, April 14, 2009

वक़्त नही

हर खुशी है लोगो के दामन में
पर एक हँसी के लिए वक्त नही
दिन रात दौड़ती इस दुनिया में
जिंदगी के लिए ही वक्त नही

माँ की लोरियों का अहसास तो है
मगर माँ को माँ कहने का वक्त नही
सारे रिश्तो को तो हम मार चुके
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नही

सारे नाम मोबाईल में है
पर दोस्ती के लिए वक़्त नही
गैरों की क्या बात करे
जब अपने के लिए ही वक्त नही

आँखों में है नींद बड़ी पर
सोने का भी वक्त नही
दिल है गमो से भरा
पर रोने का भी वक़्त नही

पैसो की दौड़ में ऐसे दौडे
की थकने का भी वक़्त नही
पराये अहसासों की क्या कद्र करे
जब अपने सपनो के लिए ही वक्त नही

तू ही बता ऐ ज़िन्दगी
इस ज़िन्दगी का क्या होगा
की हर पल मरने वालो को
जीने का भी वक्त नही

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