Tuesday, June 21, 2011

मेरा गम मुझे अज़ीज़ है

मेरा गम मुझे अज़ीज़ है कुछ दिल के तो करीब है
मेरी आँख में आंसू रहें उम्र भर ये नसीब है
मेरा गम मुझे अज़ीज़ है

कुछ लब सिसकते भी रहें कुछ आँख भीगी भी रहे
क्यों करूं ये ख्वाहिश मेरा गम इक रात पीती भी रहे
मेरे साथ कुछ तो है यहाँ ये बात क्यों अजीब है
मेरा गम मुझे अज़ीज़ है

मेरे आँख कि ये गौहरें हर गौहरों में तू रहे
सब चाहे मेरे चमन से जाए इनमें तेरी खुशबू रहे
मैं हर गौहर समेटती हूँ कोइ क्यों कहे गरीब है
मेरा गम मुझे अज़ीज़ है

मर जाऊंगी तेरी राह में आँखें बिछा कर तू न आ
देखा नहीं होगा किसी ने इस तरह तेरा रास्ता
दिल में रहे तू न दिखे तो नज़र ही बदनसीब है
मेरा गम मुझे अज़ीज़ है

मेरा गम मुझे अज़ीज़ है कुछ दिल के तो करीब है
मेरी आँख में आंसू रहें उम्र भर ये नसीब है।

Wednesday, June 15, 2011

कैसे-कैसे दरमिया आने लगा प्यार

कैसे-कैसे दरमिया आने लगा प्यार
करीब तुम्हारे मुझको लाने लगा प्यार,

खुली आंखो पर भी नीद हो जैसे
दिन की रोशनी मे खोने लगा प्यार,

इन्तज़ार रहा राहो पे हद से बाहर तक
अब नज़र-नज़र मे समाने लगा प्यार

न जाने क्या रहा लगाव इस रिश्ते मे
फ़िर हर बार मुझको तडफ़ाने लगा प्यार

जहां हो चुके हो मन पूरे समर्पित
वहां धडकन मे यू ही बसने लगा प्यार.

Friday, June 3, 2011

जो है पूरा है पर छलकता नहीं

जो है पूरा है पर छलकता नहीं
जितना है अच्छा है पर यूं झलकता नहीं

कुछ ऐसा हो कि सुबह और ताज़ी हो
ये आस्मां और फिरोज़ी हो

कुछ वैसा हो कि सपने और रूपहले हों
आरजूऐं और चमकीले हों

और यूं भी हो कि हर हंसी और नशीली हो
आंखों की नमी और गीली हो

तो पंख नए बुनूंगी फिर चुन कर रंग
उनको बांध लूंगी रूह के संग ।

उन पंखों पर ऊर्जा के धागों की कढ़ाई करूंगी
और जो पूरा है उसे और और और भरूंगी ।