Tuesday, April 19, 2011

बार बार खा कर धोखा

हर बार
बार बार
खा कर
धोखा ,भी
ना होश आया
हर बार ना
जाने हमने क्यों
हारते हुए पर
ही दांव लगाया
सोचा ,होगा साथ
मुड के देखेगा वो
पर आहट भी
ना हुई
और वो लाँघ सब
सीमायें बढ़ता ही
आया ...
और कर गया
तार तार मेरा स्वाभिमान
और मेरे हिस्से में फिर
इंतजार ही आया