आज जाने से पहेले उसने भी कुछ कहा था
गम का थोड़ा सा असर उस पेर भी हो रहा था
चुप होने से पहेले उन के लब हिले थे
उस खामोशी के नगमे हम ने भी सुने थे
एक लंबा दयरा सा बन गया अचानक
जोर जोर से दे रहा था ये दिल सिने पर दस्तक
गुज़र गई वो शाम हम कुछ भी ना कहेना पाए
निगालेंगे इन अरमानों को अब रातों के साये
नज़रों के सामने एक धुंद सी छाई थी
फिर एक बात पुरानी काही से याद आई थी
लगा .....कार रहे थे हम अपने आप ही से बाते
हमने फिर देखी उनकी परछाई जाते जाते
1 comment:
बहुत खूब !
घुघूती बासूती
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