Monday, March 30, 2009
ऐसा वादा न कर मुझसे
ऐसा वादा न कर मुझसे की तू निभा न सके,
इतना दूर न जा की कभी मुझ पे हक़ जता न सके,
गलत्फमियों से न लगा नफरत की आग,
की चाह कर भी तू बुझा न सके,
न खीच दिल के आईने पे कुछ ऐसी रेखाएं जो चेहरा बदल दे,
की अपनी ही सूरत तू धडकनों को कभी दिखा न सके,
न बांध ज़माने के रिश्तों में मासूम प्यार को तू आज,
की कल खुदा सी मोहब्बत के जस्बातों को तू कुछ समझा न सके,
है दम तेरी नफरत में तो छोड़ दे तस्बूर में भी मेरा ख्याल,
कहीं ऐसा न हो एक पल के लिए भी तेरी साँसे मुझे भुला न सके,
नामो निशा भी न छोड़ तू मेरी किसी निशानी का अपने पास,
लेकिन वक़्त के हाथ तेरे चेहरे से मेरे प्यार का निशा मिटा न सके,
सजा दिया नए रिश्तो की रौशनी ने मन तेरा जीवन,
पर यादों के लम्हों की दाल से ये मेरा नाम हाथ न सके,
इंसा से लेके खुदा तक सबने जिसे मिटाना चाहा
ऐसी मोहब्बत को भुलाने के लिए हम खुद को मन न सके,
न कर इतना शर्मिंदा मेरी मोहब्बत को आज,
की कल तू इस इश्क को अपने दिलके महल में सजा न सके.
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4 comments:
behad khubsurat rachana,ue lines bahut aachhi lagi.badhai
है दम तेरी नफरत में तो छोड़ दे तस्बूर में भी मेरा ख्याल,
कहीं ऐसा न हो एक पल के लिए भी तेरी साँसे मुझे भुला न सके,
नामो निशा भी न छोड़ तू मेरी किसी निशानी का अपने पास,
लेकिन वक़्त के हाथ तेरे चेहरे से मेरे प्यार का निशा मिटा न सके
संवेदन शील कविता।
खूबसूरत भावपूर्ण रचना....
नीरज
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