Friday, August 22, 2008

तुझे किया कहूं अए ज़िन्दगी...

तुझे किया कहूं अए ज़िन्दगी , तेरे एक पल की खबर नहीं
में करून यकीन भी तो किस तरहां , तेरी शब् की कोई सहर नहीं
मेरी खुवैशूं का यह सिलसिला , है खान तक यह खबर नहीं
यह सफ़र सदी पे मुहीत है , मेरी उम्र एक पहर नहीं

जहां दो घडी का सकूं मिले ,तेरी राह मैं वोह शजर नहीं
मै थकान से चूर हूँ इस कदर , कोई साया हद-इ- नज़र नहीं
वोह जो इश्क -इ -खून से हो आशना , कहिएं ऐसा दधा तर नहीं
मेरे दिल से भर के जला हु जो , यहाँ ऐसा कोई जिगर नहीं

तेरी काज आदी सितम गेरी . कोई यह बताये किदर नहीं
तो है बे वाफी की दास्तान . गिला तुझ से कोई मगर नहीं
तुझे छोड़ना है तो छोड़ दे , मुझे मौत का कोई डर नहीं
वोह अंधेर नगरे है गर कोई , यह भी रातों का डगर नहीं

6 comments:

aarsee said...

सच में ऐसे वक्त आते हैं जब कोई आसरा,कोई शज़र नहीं मिलता।

तरूश्री शर्मा said...

जहां दो घडी का सकूं मिले ,तेरी राह मैं वोह शजर नहीं
मै थकान से चूर हूँ इस कदर , कोई साया हद-इ- नज़र नहीं

खूब लिखा है....

admin said...

तुझे किया कहूं अए ज़िन्दगी , तेरे एक पल की खबर नहीं।
में करून यकीन भी तो किस तरहां , तेरी शब् की कोई सहर नहीं ।

जीवन के फलसफे को आपने बहुत ही सरल ढंग से बयाँ कर दिया है।

Anwar Qureshi said...

जहां दो घडी का सकूं मिले ,तेरी राह मैं वोह शजर नहीं
मै थकान से चूर हूँ इस कदर , कोई साया हद-इ- नज़र नहीं
वोह जो इश्क -इ -खून से हो आशना , कहिएं ऐसा दधा तर नहीं
मेरे दिल से भर के जला हु जो , यहाँ ऐसा कोई जिगर नहीं
बहुत खूब लिखा है साहब ..

Udan Tashtari said...

बहुत बढिया.लिखते रहें.

Neeraj K. Rajput said...

thx thx a lot