कोई उमीद भर नही आती
कोई सूरत नज़र नही आती
मौत का एक दिन मुअय्यन है
नींद क्यूं रात भर नही आती
आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी
अब किसी बात पे हँसी नही आती
है कुछ ऐसी ही बात कि चुप हूँ
वरना क्या बात कर नही आती
काबे किस मूँह से जाओगे "गालिब"
शर्म तुमको मगर नही आती
4 comments:
बहुत बढ़िया
वैसे इस प्रस्तुति के साथ गर आप इसके रचनाकार "गालिब" का नाम भी देते, तो अच्छा लगता.
कभी कभी नहीं भी मालूम होता है, तब अनजान शायर या शायर का नाम याद नहीं आदि जरुर लगा देना चाहिये अन्यथा प्रथम दृष्टा ऐसा लगता है कि आपने लिखा है, जो सही नहीं है.
आशा है मेरी सलाह अन्यथा न लेंगे.
thanka\s
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