जो है पूरा है पर छलकता नहीं
जितना है अच्छा है पर यूं झलकता नहीं
कुछ ऐसा हो कि सुबह और ताज़ी हो
ये आस्मां और फिरोज़ी हो
कुछ वैसा हो कि सपने और रूपहले हों
आरजूऐं और चमकीले हों
और यूं भी हो कि हर हंसी और नशीली हो
आंखों की नमी और गीली हो
तो पंख नए बुनूंगी फिर चुन कर रंग
उनको बांध लूंगी रूह के संग ।
उन पंखों पर ऊर्जा के धागों की कढ़ाई करूंगी
और जो पूरा है उसे और और और भरूंगी ।
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