न जाने तेरी याद क्यों फिर से आने लगी है,
दिल को बेवक्त बेवजह फिर से सताने लगी है,
खुश हो जाता है दिल मेरा अब ये सोच कर,
की तू मुझे और मेरी यादो को भुलाने लगी है,
शायद ये यादे मेरी तुजे बुहत सताने लगी है,
इसी लिए तू मेरा नाम अपने दिल से मिटाने लगी है,
अपने आपको हर-पल मुझसे छुपाने लगी है,
आहिस्ता-आहिस्ता मुझे गैर बनाने लगी है,
तुजसे बिचाद ने का गम नहीं है अब मुझे,
तन्हाई मुझे अब इस कदर बहाने लगी है. .
2 comments:
Wah wah.. Kamal ki kavita likha hai apne..
न जाने तेरी याद क्यों फिर से आने लगी है,
दिल को बेवक्त बेवजह फिर से सताने लगी है
'अपने आपको हर-पल मुझसे छुपाने लगी है,
आहिस्ता-आहिस्ता मुझे गैर बनाने लगी है,'
सचमुच किसी को अपना बनाके गैर बनाना बडा कठिन है।
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