कबीर अगर तुम न हुए होते
होते हम कितने निर्लज्ज और निष्ठुर
तुम्हारी वाणियां और साखियां
बार-बार स्मरण कराती हैं
आदमी का कद
कितना ओछा हो सकता है.
कबीर अगर तुम न हुए होते
तो होता केवल
मिथ्या जगत
तुम ही हो बटरोही
बनकर मार्ग दर्शक
आज भी अटल खड़े, अड़े हो
अड़ी हैं तुम्हारी
उलटबांसियां
सुलटा रही हैं दुष्कर्म
और दिवा स्वप्नों का
अंधेरा
हटा रही हैं पथ के कंकड़.
कबीर अगर तुम न हुए होते
नहीं होते गांधी
सत्य की लड़ाई के
योद्धा कहां खड़े होते
इस निरही जन जंगल में
कबीर अगर तुम न हुए होते
यह संसार उलझा ही रहता
उलट-पुलट हुआ रहता
मर्यादाओं को भंग करता
भीतर के तीरथ को जाने,
कितना और तिरोहित करता
कबीर अगर तुम न हुए होते
धागे कितने टूटे होते
रंग कितने बिखरे होते
ढाई आखर अपने पर रोते
कबीर अगर तुम न हुए होते
कुटिया गरीब की सूनी होती
सन्नाटा, विक्षोभ, वीराना
हर घर पर छाया होता
अगन लगी होती हर घर में
कौन बुझाने वाला होता।
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फारूक आफरीदी
2 comments:
सत्यवचन है आपका गर होते नहीं कबीर।
कौन तोड़ता जगत का कर्मकाणड जंजीर।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
क्या बात है...तुलसी बाबा पर ऐसा ही कुछ कहीं पढ़ा था..बेहतरीन!!
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