नफरत ऒ फैलाने वालों
यह तुम ठीक से जान लो
नहीं सफल हो सकते तुम
विष वमता में जान लो
मजहब नहीं सिखाता बैर
तुम्हे समझ क्यों ना आये
हिंसा कर दहशत फैलाना
रास तुम्हे कैसे आये
मातृ-भूमी पर मर मिटने का
जज्बा लिये हम जीते हैं
अनाचारियों को खत्म करने का
संकल्प लिये हम चलते हैं
विद्वेष का जहर घोल कर
जीत नहीं सकता कोई
नत् मस्तक हम प्रेम के आगे
हमें प्रेम से जीत सकता हर कोइ
4 comments:
नीरज जी,बहुत सुन्दर भाव हैं।बहुत अच्छी रचना है।बधाई।
अच्छे भाव युक्त सुंदर रचना...
नत् मस्तक हम प्रेम के आगे
हमें प्रेम से जीत सकता हर कोइ
-सुन्दर भाव!
thx u all thx a lot
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