रूठ जाते हो हर बार खुद ही
कभी हमें भी तो रूठ जाने दिया होता
मनाते हैं हम हर बार ही तुमको
कभी तुमने भी तो हमें मनाया होता
जानते हैं हम की पत्थर हो तुम
कभी तुमने अपने दिल मैं कोई फूल तो खिलाया होता
जब भी मिले हो बस काँटे ही चुभोये हैं
कभी किसी गुल से तो हमें नवाजा होता
ज़ख़्म पर ज़ख़्म दिए हमको
कभी उन पर मरहम तो लगाया होता
माना की तुमको प्यार नही हमसे
पर कभी झुटे ही अपने गले से तो लगाया होता
हम तो भूल जाते इस एक पल मैं हर बात को
कभी प्यार से हमें नाम से बुलाया तो होता.
4 comments:
वाह.
बहुत अच्छे.
लिखना जारी रहे.
अच्छा है भाई. जाने क्यों आज कुछ ज्यादा ही पसंद आया. बहरहाल लिखते रहें.
acha likha hai....
aap sab ko bahut bahut dhanywad.
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